स्व. बी. पुट्टस्वामय्या कन्नड के विख्यात नाटककार, पत्रकार, उपन्यासकार, शोधकर्ता, इतिहासवेत्ता, संगीत एवं कला के उपासक थे। उनके द्वारा रचित ‘कुरुक्षेत्र’ और ‘दशावतार’ नाटकों के व्यवसायी नाटक मंडलियों द्वारा लगभग ढाई-दशक तक लगातार मंचन होते रहे। उन्होंने बीस से भी अधिक नाटक लिखे। कुछ कारणों से उनका मन नाटकों से उचट गया और उपन्यास लेखन की ओर मुड़ गए। इतिहास की समस्याओं को सुलझाने में जिज्ञासा होने के कारण ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना में लगे रहे।
कर्नाटक में 12वीं सदी में एक बहुआयामी आन्दोलन छिड़ा था। बसवेश्वर उस आन्दोलन के कर्णधार थे। उसी आन्दोलन को विषय वस्तु बनाकर पुट्टस्वामय्या ने सिलसिलेवार छह उपन्यासों की रचना की - ‘उदय-रवि’, ‘राज्यपाल’, ‘कल्याणेश्वर’, ‘नागबन्ध’, ‘अधूरा सपना’ और ‘क्रान्ति-कल्याण’। ‘क्रान्ति-कल्याण’ को 1965 में साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
जन्म 1949 में औरंगाबाद (महा.) जिले के एक दूरदराज देहात में हुआ। वे अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. हैं। कुछ बरसों तक अध्यापक रहे बाबा भांड विगत 30 बरसों से प्रकाशन तथा रचनाकर्म से जुड़े हुए हैं। पहले ‘धारा प्रकाशन’ फिर ‘साकेत प्रकाशन प्रा. लि.’ की ओर से अब तक उन्होंने 1000 से अधिक मराठी पुस्तकों का प्रकाशन किया है। छात्र जीवन में ही स्काउट प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने दस यूरोपीय देशों की यात्रा कर ‘लागेबान्धे’ नामक यात्रावृत्त लिखा था। तब से आज तक लगभग 70 पुस्तकें लिखने वाले मराठी साहित्यकार बाबा भांड की रचनाओं का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि उनके बाल- उपन्यास ‘धर्मा’ का सोलहवाँ संस्करण पिछले वर्ष प्रकाशित हुआ था। उन्हें उनकी रचनाओं के लिए अब तक 25 पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। अकेले ‘दशक्रिया’ उपन्यास को आधे दर्जन से ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
प्रकाशित पुस्तकें: उपन्यास: काजोल, जरंगा, धर्मा, पांढÚया हत्तीची गोष्ट। प्रवासवर्णन: लागेबांधे, पांगोरे, पारंब्या, झेलम ते बियास। कहानी: कायापालट। संपादन: कोसलाबद्दल। बच्चों के लिए भी लेखन।
बाबुषा कोहली
६ फरवरी, १९७९ कटनी (म.प्र.) में जन्म।
केवी नं. १, जबलपुर में कार्यरत।
पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित। पहला कविता-संग्रह 'प्रेम गिलहरी दिल अखरोट’ भारतीय ज्ञानपीठ से।
दो शॉर्ट फिल्मों 'जंतर’ व 'उसकी चिठ्ठियाँ’ का निर्माण व निर्देशन।
भारतीय ज्ञानपीठ का दसवाँ नवलेखन पुरस्कार। जि़ला प्रशासन जबलपुर व म.प्र. पुलिस के संयुक्त तत्त्वावधान में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस-२०१५ का विशिष्ट प्रतिभा सम्मान।
ट्रेंड इण्डियन कंटेम्पररी नृत्यांगना, संगीत और यायावरी में रुचि।
'हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास’ के रूप में हिंदी को एक अनूठा आलोचना-ग्रंथ देनेवाले बच्चन सिंह का जन्म जिला जौनपुर के मदवार गांव में हुआ था।
शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में हुई।
आलोचना के क्षेत्र में आपका योगदान इन पुस्तकों के रूप में उपलब्ध है : क्रांतिकारी कवि निराला, नया साहित्य, आलोचना की चुनौती, हिंदी नाटक, रीतिकालीन कवियों की प्रेम व्यंजना, बिहारी का नया मूल्यांकन, आलोचक और आलोचना, आधुनिक हिंदी आलोचना के बीज शब्द, साहित्य का समाजशास्त्र और रूपवाद, आधुनिक हिंदी साहित्य का इतिहास, भारतीय और पाश्चात्य काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन तथा हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास (समीक्षा)।
कथाकार के रूप में आपने लहरें और कगार, सूतो व सूतपुत्रो वा (उपन्यास) तथा कई चेहरों के बाद (कहानी-संग्रह) की रचना की। प्रचारिणी पत्रिका के लगभग एक दशक तक संपादक रहे।
निधन : 5 अप्रैल, 2008
जन्म: 1925 में। इन छह दशकों में उनके बिना नाटकों की चर्चा करना बेमानी है। मूल बंगाली में लिखे होने के बावजूद उनके दर्जनों नाटक उसी तन्मयता के साथ अन्य भारतीय भाषाओं में अनूदित हुए और खेले जाते रहे हैं।
प्रकाशन: एवं इन्द्रजीत, बाक़ी इतिहास, वल्लभपुर की रूप कथा, राम-श्याम, जादू, कवि कहानी, अबुहसन, सगीना महतो, स्पार्टाकस तथा सारी रात (सभी नाटक) एवं इन्द्रजीत तथा बाक़ी इतिहास सहित कई नाटक मराठी, गुजराती, कन्नड़, मणिपुरी, असमी, पंजाबी, हिन्दी तथा अंग्रेज़ी में अनूदित तथा मंचित।
सम्मान: संगीत नाटक अकादमी का राष्ट्रपति सम्मान, नेहरू फैलोशिप आदि।
सम्प्रति: इंजीनियर तथा नाट्य समूह आँगन मंच से सम्बद्ध।
बद्री नारायण
बद्री नारायण गोविन्द बल्लभ पन्त सामाजिक विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद में सामाजिक इतिहास/सांस्कृतिक नृतत्वशास्त्र विषय के प्रोफेसर तथा सामाजिक विज्ञान संस्थान, मानव विकास संग्रहालय एवं दलित रिसोर्स सेन्टर के प्रभारी हैं।
यू.जी.सी., आई.सी.एस.एस.आर., आई.सी.एच.आर., तथा इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, शिमला (1998-99) के अलावा इंटरनेशनल इंस्टीटयूट ऑफ एशियन स्टडीज, लाइडेन यूनिवर्सिटी, द नीदरलैंड (2002), मैसौन द साइंसेज द ला होम, पेरिस के फेलो रहे हैं। फुलब्राइट एवं स्मट्स फेलोशिप (सितम्बर 2005-अप्रैल 2007) भी आपको मिल चुकी है।
हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कवि के रूप में स्थापित। तीन कविता संकलन 'सच सुने कई दिन हुए’, 'शब्दपदीयम’ व 'खुदाई में हिंसा’ चर्चित रहे।
सम्मान : साहित्यिक औरी अकादमिक उपलब्धियों के लिये विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया है जिनमें भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान एवं 'केदार सम्मान’ प्रमुख है। तीसरे कविता संकलन 'खुदाई में हिंसा’ के लिए स्पन्दन कृति सम्मान, राष्ट्रकवि दिनकर सम्मान से सम्मानित। वर्ष 2011 में कविता के लिए प्रतिष्ठित शमशेर सम्मान व मीरा स्मृति पुरस्कार (2012), से सम्मानित।
अंग्रेजी पुस्तकें : 'कांशीराम : लीडर ऑफ द दलित्स’, 'द मेकिंग ऑफ द दलित पब्लिक इन नॉर्थ इंडिया : उत्तर प्रदेश 1950-प्रेजेंट’, 'फैसिनेटिंग हिन्दुत्वा—सैफरान पालिटिक्स एंड दलित मोबलाईजेशन’, 'विमेन हिरोज एंड दलित एसरसन इन नार्थ इंडिया’, 'मल्टीपल मार्जिनेल्टिज : एन एंथोलॉजी ऑफ आइडेंटिफाइड दलित राइटिंग्स’, 'डाक्युमेंटिग डिसेंट : कंटेस्टिंग फेबल्स, कंटेस्टेड मेमोरिस् एंड दलित पॉलिटिकल डिस्कोर्स।
हिन्दी पुस्तक लोक संस्कृति में राष्ट्रवाद, लोक संस्कृति और इतिहास, संास्कृतिक गद्य।
जन्म: 16 सितम्बर, 1932 को, अकालगढ़, जिला - गुजराँवाला में (अब पाकिस्तान)।
शिक्षा: एम.ए., पी-एच.डी.।
डॉ. बदरीनाथ कपूर पिछले पाँच दशकों से भाषा, व्याकरण और कोश प्रणयन के क्षेत्र में निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. कपूर 1956 से 1965 तक हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा प्रकाशित ‘मानक हिंदी कोश’ पर सहायक सम्पादक के रूप में काम करते रहे। बाद में जापान सरकार के आमंत्रण पर टोक्यो विश्वविद्यालय में, 1983 से 1986 तक, अतिथि प्रोफेसर के रूप में सेवा प्रदान की।
प्रकाशन: प्रभात बृहत् अंग्रेजी-हिंदी कोश, प्रभात व्यावहारिक अंग्रेजी-हिंदी कोश, प्रभात व्यावहारिक हिंदी-अंग्रेजी कोश, प्रभात विद्यार्थी हिंदी-अंग्रेजी कोश, प्रभात विद्यार्थी अंग्रेजी-हिंदी कोश, बेसिक हिंदी, हिंदी पर्यायों का भाषागत अध्ययन, वैज्ञानिक परिभाषा कोश, आजकल की हिंदी, अंग्रेजी-हिंदी पर्यायवाची कोश, शब्द-परिवार कोश, हिंदी अक्षरी, लोकभारती मुहावरा कोश, परिष्कृत हिंदी व्याकरण, सहज हिंदी व्याकरण, नूतन पर्यायवाची कोश, लिपि वर्तनी और भाषा, हिंदी व्याकरण की सरल पद्धति, आधुनिक हिंदी प्रयोग कोश, बृहत् अंग्रेजी-हिंदी कोश, व्यावहारिक अंग्रेजी-हिंदी कोश, मुहावरा तथा लोकोक्ति कोश, व्याकरण- मंजूषा, हिंदी प्रयोग कोश आदि।
अलंकरण एवं सम्मान: डॉ. कपूर की अनेक पुस्तकें उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पुरस्कृत हैं। ‘श्री अन्नपूर्णानन्द वर्मा अलंकरण’ 1997, ‘सौहार्द सम्मान’ 1997, ‘काशी रत्न’ 1998, ‘महामना मदनमोहन मालवीय सम्मान’ 1999 एवं ‘विद्या भूषण सम्मान’ 2000 ।
आवरण: राजकमल स्टूडियो
जन्म: बिहार के कैमुर जिले की पर्वतावली के एक छोटे से गाँव में।
बचपन कैमुर के गाँव में और अध्ययन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से। अनपढ़ अभिवंचित बच्चों से प्रेरित होकर सभी अरमानों को त्याग कर प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में कार्य। पाँच वर्षों तक मूसहर (भूइयां) जाति के बच्चों को नवाचारी ढंग से शिक्षण। शिक्षकों, प्रशिक्षकों एवं शिक्षा अधिकारियों का प्रशिक्षण, सामुदायिक सहभागिता पर नए ढंग से कार्य। विविध मंच कलाओं से सम्बद्धता एवं कार्य। लेखन में कार्य रुचि।
लेखन एवं प्रकाशन: प्राथमिक कक्षाओं में गतिवधि आधारित शिक्षण।
विद्यालय पूर्व शिक्षा: अभिभावक एवं अध्यापक (यंत्रस्थ)। नवाचारी शिक्षण:
एक प्रयोग (यंत्रस्थ)।
यथार्थ: कहानी संग्रह (यंत्रस्थ)।
प्रेरणा स्रोत: पिता, परिवार एवं गरीब अभिवंचित वर्ग के बच्चे।
संप्रति: शिक्षण अधिगम सामग्रियों के निर्माण एवं उनके प्रयोग पर कार्य।
जन्म: 25 अप्रैल, 1946 कोयटा, ब्लूचिस्तान (पाकिस्तान)।
प्रकाशित कविता-संग्रह:
हिन्दी: दरवाजे गिरवी रखे हैं, टुकड़ा-टुकड़ा ख्याल।
पंजाबी: दस्तक, बदला ते लिखी इबारत।
सम्पर्क: ई-17, शालीमार कालोनी, आदर्श नगर, अजमेर (राजस्थान)।
समाजवादी विचारक और डॉ. राममनोहर लोहिया के राजनीतिक साथी बालकृष्ण गुप्त जी का जन्म 5 मार्च, 1910 में राजस्थान के बीकानेर जिले के भादरा गाँव में हुआ। उन्होंने 1930 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी से फर्स्ट-क्लास ऑनर्स के साथ बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1931-1934 में लंदन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में बी.एससी ऑनर्स की डिग्री ली। वे प्रो. हेराल्डे लास्की और प्रो. डाल्टन के प्रिय शिष्यों में रहे। वे ट्रॉटस्की से मिलने पेरिस भी गए। लंदन में हैम्पस्टीड क्षेत्र की इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी और सोशलिस्ट लीग के सचिव भी थे। वे वहां हिंदुस्तान टाइम्स और हिंदुस्तान स्टैंडर्ड के संवाददाता व साप्ताहिक-पत्र लेखक भी थे।
बालकृष्ण गुप्त ने हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में बहुत से लेख लिखे। छह सालों तक योरोप तथा एशिया के विभिन्न देशों में घूमकर वहाँ की राजनीति तथा अर्थनीति का गहरा अध्ययन किया। इसके बाद 1932 में रूस की राजनीतिक व्यवस्था का विशेष अध्ययन करने गए। भारत आकर उन्होंने 1942 के आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। जयप्रकाश नारायण, डॉक्टर राममनोहर लोहिया और श्रीमती अरुणा आसफ अली की गुप्त रूप से सक्रिय आंदोलन की रणनीति में सक्रिय हिस्सेदारी से सहायता की।
गुप्त ने अच्युत पटवर्धन और सुचेता कृपलानी की भी बड़ी मदद की। निजामशाही के खिलाफ सोशलिस्ट पार्टी के साथ लड़ाई लड़ी। नेपाल कांग्रेस की स्थापना से लेकर क्रांति तक राणाशाही के विरुद्ध चले आंदोलन में सक्रिय मदद की। सोशलिस्ट पार्टी के शुरू से ही मेंबर रहे श्री गुप्त अंग्रेजी, हिंदी के कुशल वक्ता व गंभीर लेखक थे। वे अर्थशास्त्र और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के पंडित माने जाते थे। बालकृष्ण जी बिहार विधानसभा क्षेत्र से राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1972 में बालकृष्ण गुप्त का निधन हो गया।
BallabhSidharth
सिक्किम के राज्यपाल बाल्मीकि प्रसाद सिंह एक मान्य विद्वान, विचारक और प्रशासक हैं। आपको ‘जवाहरलाल फैलोशिप’ (1982-84), ‘क्वीन एलिजाबेथ फैलोशिप’ (1989-90) और ‘महात्मा गांधी फेलोशिप’ सहित अनेक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। इनमें विशिष्ट प्रशासनिक सेवा के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा ‘गुलजारी लाल नंदा अवार्ड’ (1998) और माननीय दलाई लामा द्वारा ‘मैन ऑफ लैटर्स’ अवार्ड (2008) भी शामिल हैं।
पिछले चार दशकों में आप अतिरिक्त सचिव (पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, 1993-95), संस्कृति सचिव (1995-97) और गृह सचिव (1997-99) जैसे विभिन्न महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। 1999-2002 की अवधि में आप विश्व बैंक में कार्यकारी निदेशक और राजदूत भी रहे।
प्रकाशित रचनाएँ: द प्रॉब्लम ऑफ चेंज: ए स्टडी ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया (1987); इंडिया’ज कल्चर: द स्टेट, द ऑर्ट्स एंड बियांड (1998); (‘संस्कृति: राज्य, कलाएँ और उनसे परे’ शीर्षक से राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित) सहित पाँच पुस्तकें।
‘द मिलेनियम बुक ऑन न्यू डल्ही’ (2001) के मुख्य सम्पादक।
बलराज मेनरा और शरद दत्त
मंटो-मेनरा दोस्ती सन् इक्यावन में शुरू हुई।
मंटो-शरद दोस्ती का आरंभ सन् अट्ठावन में हुआ।
मेनरा-शरद दोस्ती, मंटो के ताल्लुक़ से, एमरजेंसी की सियाही में पनपी।
बलराज मेनरा और शरद दत्त को एक-दूसरे के अस्तित्व तक का ज्ञान न था। दोनों अपने-अपने तौर पर अलग-अलग, एक-दूसरे से बेख़बर, मंटो की संगत में जि़ंदगी गुज़ार रहे थे। जब 1975 में दोनों की मुलाक़ात हुई तो एक ही साथ दोनों का 'मैं’ और 'तुम’ ढह गए। बस वह मंटो बोलने लगा, और यूँ जानिए, $खुद मंटो ही सुनने लगा।
मंटो-मेनरा-शरद दोस्ती तीन व्यक्तियों या तीन नामों के गिर्द नहीं घूमती। इस दोस्ती को हर पल, हर घड़ी दसों दिशाओं में फैलाने का काम नीती ने भी किया है, भोलू ने भी, और बिशनसिंह और मम्मद भाई ने भी।
आप दोस्तों की इस महफि़ल में शामिल हो सकते हैं। शर्त सिर्फ इतनी है कि प्रतिवाद, व$फा और दर्दमंदी आपके जीवन के बुनियादी मूल्य हों।
डॉ. बलराम शुक्ल का जन्म 19 जनवरी, सन् 1982 ईस्वी में गोरखपुर के सोहरौना राजा नामक गाँव में हुआ। फिलहाल वह दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में प्राध्यापक हैं। इनका स्नातक पर्यन्त अध्ययन गोरखपुर विश्वविद्यालय से तथा स्नातकोत्तर एवं शोध दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्पन्न हुआ। इनका शोधकार्य व्याकरण दर्शन तथा भाषा विज्ञान से सम्बन्धित है। संस्कृत के अतिरिक्त इन्होंने फ़ारसी में भी स्नातकोत्तर की उपाधि ली है तथा अरबी भाषा के उच्चतर प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम को भी उत्तीर्ण किया है।
डॉ. शुक्ल संस्कृत तथा फ़ारसी दोनों भाषाओं के कवि हैं। 'परीवाह:’, 'लघुसन्देशम्’ तथा 'कवितापुत्रिकाजाति:’ शीर्षकों से इनके 3 संस्कृत कविता संग्रह प्रकाशित हैं। भाषा विज्ञान तथा संस्कृत साहित्य सम्बन्धी अन्य विषयों पर इनकी 4 और पुस्तकें भी प्रकाशित हैं। संस्कृत तथा फ़ारसी साहित्य का पारस्परिक अनुवाद इनकी अकादमिक गतिविधियों में से एक है।
डॉ. शुक्ल भारत के राष्ट्रपति द्वारा 2013 में 'बादरायण व्यास सम्मान’ से सम्मानित किए जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त इन्हें उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा 'कालिदास सम्मान’ तथा मन्दाकिनी-विद्वत्-परिषद् द्वारा 'विद्यासागर’ की उपाधि से भी सम्मानित किया गया है।
सम्पर्क : shuklabalram82@gmail.com
बाल शोरिरेड्डी
जन्म : 1925, गुजराँवाला, पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान) ।
शिक्षा : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक।
हिंदी कथा-साहित्य में अकेले ऐसे कृतिकार जिन्होंने पंजाब के ऐतिहासिक काल से लेकर आधुनिक मनोभूमि के विराट चित्र अपनी कृतियों में प्रस्तुत किए हैं। इनकी कितनी ही औपन्यासिक कृतियों को महाकाव्य कहा जा सकता है। जनजीवन के सामाजिक यथार्थ की ऐसी विश्वसनीयता हिंदी साहित्य में प्रायः विरल है। परिवेश ऐतिहासिक हो या समसामयिक - उनकी रचनाओं में संवेदना का तरल प्रवाह विद्यमान है । 12-13 वर्ष की आयु में पहली गद्य रचना । 1964 तक व्यवसाय।
प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें : रात चोर और चाँद, काले कोस, रावी पार, सूना आसमान, साहिबे-आलम, राका की मंज़िल, चकपीराँ का जस्सा, दो अकालगढ़, एक मामूली लड़की, औरत और आबशार, आग की कलियाँ, बासी फूल (उपन्यास); पहला पत्थर, चिलमन, मेरी प्रिय कहानियाँ, प्रतिनिधि कहानियाँ (कहानियाँ); अमृता प्रीतम (आलोचना)।
निधन: 27 मई, 1986
बलवंत गार्गी
बलवंत गार्गी भटिंडा के रेतीले इलाके के एक गाँव में 1916 में पैदा हुए । उनकी साहित्यिक सूझ लाहौर में निखरी, दिल्ली में परवान चढ़ी, यूरोप, रूस और अमरीका के थियेटरों में सँवरी और फिर भारत में अपनी जड़ें मजूबूत कीं ।
उनके बारह बड़े नाटक, पैंतीस एकांकी, दो उपन्यास, दर्जनों कहानियाँ और रेखाचित्र प्रकाशित हुए । इनमें 'लोहाकुट्ट', 'सुल्तान रजिया', 'सौकन' और 'अभिसारिका' विशेष महत्त्व रखते हैं । उनके आत्मकथापरक उपन्यास 'नंगी धूप' ने साहित्यिक जगत् में सनसनी फैला दी और पारंपरिक मूल्यों को चुनौती दी ।
इन्हें बहुत से नेशनल और इन्टरनेशनल एवार्ड मिले- साहित्य अकेडमी एवार्ड (1962 ), वटटूमल स्पेशल अचीवमेण्ट एवार्ड (1967 ), और पद्मश्री (1972) । आपके नाटक रूस, पोलैंड, यूके., जर्मनी, अमरीका और भारत के मुख्य शहरों में खेले गए । इनका रचित नाटक 'सोहनी-महिवाल' मॉस्को के जिप्सी थियेटर में तीन बरस तक खेला गया ।
आजकल आप नई दिल्ली में बतौर साहित्यकार और फिल्ममेकर रह रहे हैं ।
डॉ. बैन्जामिन खान इन्दौर क्रिश्चियन कॉलेज, इन्दौर में दर्शन विभाग के अध्यक्ष रहे हैं और इन्दौर विश्वविद्यालय के कई महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। आपका जन्म जिला हिसार (हरियाणा) के एक गाँव रोड़ी में हुआ था। आपने पंजाब विश्वविद्यालय से दर्शन विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर, आगरा विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की उपाधि सन् 1962 में प्राप्त की। आपने कई रोचक विषयों पर प्रामाणिक पुस्तकें लिखी हैं: ‘वाल्मीकि रामायण में धर्म का स्वरूप’, ‘इस्लाम का परिचय’ तथा ‘ख्रिस्तीय नीति शास्त्र’।
‘इस्लाम: एक परिचय’ पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कार भी मिल चुका है।
‘मसीही धर्म का इतिहास’ की सामग्री एकत्रित करने के लिए आपने मसीही धर्म के जन्मस्थान अर्थात् इज़राइल में तीन महीने रहकर खोज की। आपने विदेशों के कई विश्वविद्यालयों में भारतीय दर्शन और संस्कृति पर लेक्चर भी दिये हैं। दर्शन और इतिहास आपकी विशेष रुचि के विषय हैं।
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय
जन्म : राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम के रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 1838 को उत्तरी चौबीस परगना के कन्थलपाडा में एक समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था |
शिक्षा : सन 1857 में बी.ए. उतीर्ण करने के पश्चात् 1869 में कानून की डिग्री हासिल की | प्रेसिडेंसी कालेज से बी.ए. की उपाधि लेनेवाले ये पहले भारतीय थे |
गतिविधियाँ : शिक्षा के उपरांत डिप्टी मजिस्ट्रेट के पद पर आपकी नियुक्ति हो गयी | कुछ समय तक बंगाल सरकार के सचिव पद पर कार्यरत थे और सी.आई.ई. की उपाधि हासिल की | सन 1891 में सरकारी नौकरी से रिटायर हुए |
साहित्य-सेवा : आपकी पहचान बांग्ला कवि, उपन्यासकार और पत्रकार के रूप में है | प्रथम प्रकाशित रचना राजा राममोहन वाइज थी | प्रथम प्रकाशित बंग्लाकृति 'दुर्गेशनन्दिनी' मार्च, 1865 में | अगली रचना 'कपाल कुंडला' 1866 में प्रकाशित | आपकी कविताये लालिता और मानस नामक संग्रह में प्रकाशित हुई | आपने धर्म, सामाजिक और समसामयिक मुद्दों पर आधारित कई निबंध लिखे |
निधन : सन 1894 में |
बनवारी (जन्म १९४७, उत्तर प्रदेश) आरम्भ में दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन मेमोरियल कॉलेज में दर्शनशास्त्र का अध्यापन, फिर टाइम्स ऑफ इण्डिया समूह के प्रकाशन 'दिनमान’ में संवाददाता और फिर इण्डियन एक्सप्रेस समूह के दैनिक 'जनसत्ता’ में स्थानीय सम्पादक। उसके बाद समाज समीक्षण केन्द्र चेन्नई से सम्बद्ध रहे।
१९८० में पत्रकारिता के लिए संस्कृति पुरस्कार से सम्मानित।
प्रकाशित पुस्तकें :
पंचवटी : भारतीय पर्यावरण परम्परा
भारतीय सभ्यता के सूत्र
महारास : प्रकृति, उत्सव और समाज
भारतीय इतिहास-दृष्टि
यूरोपीय सभ्यता का स्वरूप और उसका भविष्य
इन दिनों दिल्ली में
बर्टोल्ट ब्रेष्ट
जर्मन नाटककार, कवि, निर्देशक यूजिन बर्टोल्ट ब्रेष्ट (1898-1956) की ज़िंदगी और साहित्य का अहम मकसद था - अमर शांति का पैगाम और उसका प्रचार।
उन्होंने पहले विश्वयुद्ध में एक मेडिकल टीम के सदस्य के रूप में भाग लिया परन्तु युद्ध की मारकाट, तबाही और बर्बादी ने उनके मन पर गहरा असर छोड़ा। उन्होंने 1918 में अपनी पहली कविता ‘लीजेंड ऑव द सोल्जर’ लिखी और चौबीस वर्ष की आयु में पहला नाटक ‘ड्रम्स ऑव नाइट’ लिखा।
उन्होंने ‘बाल’ (1919) ए ‘इन द जंगल ऑव सिटीज’ (1923) और ‘मैन इक्वल मैन’ (1925) में एक नई नाट्य-प्रस्तुति का प्रयोग किया जो दर्शकों को नाटक के कथ्य से भावनात्मक रूप में जुड़ने से रोकता था। अपने नाटकों ‘हू से यस’ (1929) और ‘हू से नो’ (1930) में उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या क्रान्ति के लिए व्यक्ति की बलि दी जा सकती है। ‘एक्सेप्शन ऑव द रूल’ में वर्गभेद द्वारा मानव-शोषण का मुद्दा उठाया गया है। पहली प्रस्तुति पर सफलता ‘थ्री पेनी ओपेरा’ (1928) से मिली थी।
हिटलर के बढ़ते प्रभाव के कारण वह 1933 में जर्मनी से फरार हो गए और देशाटन के बाद 1941 में अमरीका पहुँचे। विदेश प्रवास में उन्होंने ‘लाइफ ऑव गैलीलियो’ए ‘मदर करेज’ए ‘गुड वुमन ऑव सेत्जुआन’ए ‘आर्टो रू ओई’ तथा ‘कॉकेशियन चॉक सर्किल’ जैसे कालजयी नाटकों की रचना की।
Bhadant Anand
डॉ. भगीरथ मिश्र
हिन्दी के अधुनातन काव्यशास्त्री आचार्य भगीरथ मिश्र का जन्म संवत् 1971 विक्रमी पौष कृष्णा एकादशी रविवार को कानपुर जिले के एक छोटे से गाँव ‘सैंथा’ में।
शिक्षा: लखनऊ विश्वविद्यालय से ‘हिन्दी काव्य-शास्त्र का इतिहास’ विषय पर डाक्ट्रेट (पी-एच.डी.)।
डॉ. मिश्र का कृतित्व अत्यन्त बहुआयामी रहा है। उन्होंने लगभग 32 स्वतंत्र ग्रंथ लिखे हैं और हिन्दी के दर्जनों ग्रंथों की प्राथमिक, समीक्षात्मक भूमिकाएँ भी लिखी हैं। इस : ष्टि से हिन्दी काव्यशास्त्र का इतिहास, काव्यशास्त्र, पाश्चात्य काव्यशास्त्र, तुलसी रसायन, काव्यरस चिन्तन और आस्वाद, भाषा-विवेचन, हिन्दी रीति साहित्य आदि उल्लेखनीय हैं।
डॉ. मिश्र लखनऊ विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक एवं रीडर तथा पूना विश्वविद्यालय (महाराष्ट्र) और सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर, अध्यक्ष रहे। सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) के वे कुलपति भी रहे।
निधन: 12 नवम्बर, 1994 को सागर (म.प्र.) में।
जन्म : 1931 में गोरखपुर जनपद के गगहा गाँव में। साहित्य की विविध विधाओं में लेखन। उनका शोधपरक लेखन इतिहास और भाषा के क्षेत्र में रहा है।
प्रकाशित कृतियाँ : काले उजले टीले (1964); महाभिषग (1973); अपने अपने राम (1992); परम गति (1999); उन्माद (2000); शुभ्रा (2000); अपने समानान्तर (1970); इन्द्र धनुष के रंग (1996)।
शोधपरक रचनाएँ : स्थान नामों का भाषावैज्ञानिक अध्ययन (अंशत: प्रकाशित, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, 1973); आर्य-द्रविड़ भाषाओं की मूलभूत एकता (1973); हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य, दो खंडों में (1987); दि वेदिक हड़प्पन्स (1995); भारत तब से अब तक (1996); भारतीय सभ्यता की निर्मिति (2004); भारतीय परंपरा की खोज (2011); प्राचीन भारत के इतिहासकार (2011); कोसंबी : मिथक और यथार्थ (2011)।
सम्प्रति : 'ऋग्वेद की परम्परा’ पर धारावाहिक लेखन, 'नया ज्ञानोदय’ में।
संपर्क : ए-6 सिटी अपार्टमेंट, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली-110034
जन्म : 23 जनवरी, 1960, नगीना, जिला मेवात (हरियाणा)।
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी) एवं पत्रकारिता में डिप्लोमा।
कृतियाँ : उपन्यास : काला पहाड़ (1999), बाबल तेरा देस में (2004), रेत (2008 तथा 2010 में उर्दू में अनुवाद), नरक मसीहा (2014)। कहानी संग्रह : सिला हुआ आदमी (1986), सूर्यास्त से पहले (1990), अस्सी मॉडल उ$र्फ सूबेदार (1994), सीढ़ियाँ, माँ और उसका देवता (2008), लक्ष्मण-रेखा (2010), दस प्रतिनिधि कहानियाँ (2014)। कविता संग्रह : दोपहरी चुप है (1990)। अन्य : कलयुगी पंचायत (बच्चों के लिए -1997), हिन्दी की श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, सम्पादन (1987), इक्कीस श्रेष्ठ कहानियाँ, सम्पादन (1988)।
सम्मान/पुरस्कार : 'श्रवण सहाय एवार्ड’ (2012); 'जनकवि मेहरसिंह सम्मान’ (2010), हरियाणा साहित्य अकादमी; 'अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ (2009) कथा (यूके) लन्दन; 'शब्द साधक ज्यूरी सम्मान’ (2009); 'कथाक्रम सम्मान’ (2006) लखनऊ; 'साहित्यकार सम्मान’ (2004) हिन्दी अकादमी, दिल्ली; 'साहित्यिक कृति सम्मान’ (1999) हिन्दी अकादमी, दिल्ली; 'साहित्यिक कृति सम्मान’ (1994) हिन्दी अकादमी, दिल्ली; पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण द्वारा मद्रास का 'राजाजी सम्मान’ (1995); 'डॉ. अम्बेडकर सम्मान’ (1985) भारतीय दलित साहित्य अकादमी; पत्रकारिता के लिए 'प्रभादत्त मेमोरियल एवार्ड’ (1985); पत्रकारिता के लिए 'शोभना एवार्ड’ (1984)।
जनवरी 2008 में ट्यूरिन (इटली) में आयोजित भारतीय लेखक सम्मेलन में शिरकत।
पूर्व सदस्य, हिन्दी अकादमी (दिल्ली) एवं हरियाणा साहित्य अकादमी।
सम्प्रति : उपनिदेशक, केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली।
सम्पर्क : WZ-745G, दादा देव रोड, नज़दीक बाटा चौक, पालम, नई दिल्ली-110045
Email : bdmorval@gmail.com
जन्म : 13 सितम्बर, 1939, ग्राम टेहेरका, जिला टीकमगढ़ (म.प्र.)।
शिक्षा : बी.ए. (बुन्देलखंड कॉलेज), झाँसी (उ.प्र.)। एम.ए.बी.एड. प्राइमरी स्कूल के अध्यापक के रूप में कार्य करते हुए भोपाल (म.प्र.) से। 1967 से 1982 तक क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, मैसूर (कर्नाटक) तथा भोपाल में हिन्दी के व्याख्याता। 1983 से 1994 तक हिन्दी के रीडर पद पर कार्य करने के बाद दो वर्ष तक मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के संचालक। 1998 से 2001 तक क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान में हिन्दी के प्रोफेसर तथा समाज विज्ञान और मानविकी शिक्षा विभाग के अध्यक्ष। इसके बाद 2001 से 2003 तक साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश के निदेशक तथा मासिक पत्रिका 'साक्षात्कार’ का सम्पादन। 1989 से 1995 तक म.प्र. प्रगतिशील लेखक संघ के प्रान्तीय अध्यक्ष तथा 'वसुधा’ (त्रौमासिक) पत्रिका का सम्पादन। मध्य प्रदेश की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के विकास एवं संचालन में सक्रिय योगदान।
सृजन (कविता संग्रह) : 1. समुद्र के बारे में (1977), 2. दी हुई दुनिया (1981), 3. हुआ कुछ इस तरह (1988), 4. सुनो हिरामन (1992), 5. अथ रूपकुमार कथा (1993), 6. सच पूछो तो (1996), 7. बिथा-कथा (1997), 8. हमने उनके घर देखे (2001), 9. ऐसी कैसी नींद (2004), 10. निर्वाचित कविताएँ (2004), कहते हैं कि दिल्ली की है कुछ आबोहवा और (2007), अम्मा से बातें और अन्य कविताएँ (2008), देश एक राग है (2009)।
आलोचना : 1. कविता का दूसरा पाठ (1993), 2. कविता का दूसरा पाठ और प्रसंग (2006)।
सम्मान : 1. दुष्यन्त कुमार पुरस्कार, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् (1979), 2. वागीश्वरी सम्मान, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन (1989), 3. शिखर सम्मान, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग (1997-98), 4. भवभूति अलंकर, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन (2004)।
उर्दू, पंजाबी, मराठी, बांग्ला, उड़िया, कन्नड़, मलयालम, अंग्रेजी तथा जर्मन भाषाओं में कविताएँ अनूदित।
सम्पर्क : 129, आराधना नगर, कोटरा, भोपाल 462003 (म.प्र.)
निधन : किडनी की गम्भीर बीमारी से जूझते हुए 25 मई, 2012 को भोपाल (म.प्र.) में अवसान।
भगवतीचरण वर्मा
30 अगस्त, 1903 को उन्माव जिले (उ॰प्र॰) के शफीपुर गॉव में जन्म ।
शिक्षा : इलाहाबाद से बी. ए., एल. एल. बी. ।
प्रारम्भ में कविता-लेखन । फिर उपन्यासकार के नाते विख्यात भगवती बाबू 1933 के करीब प्रतापगढ़ के राजा साहब भदरी के साथ रहे । 1936 के लगभग फिल्म कार्पोरेशन, कलकत्ता में कार्य किया । कुछ दिनो तक ‘विचार’ नामक साप्ताहिक का प्रकाशन-सम्पादन और इसके खाद बम्बई में फिल्म-कथा लेखन तथा दैनिक
'नवजीवन' का सम्पादन । आकाशवाणी के लई केद्रों में भी कार्य । बाद में, 1957 से 'मृत्यु-पर्यत्न स्वतंत्र साहित्यकार के रूप में लेखन ।
उनके बेहद लोकप्रिय उपन्यास ‘चित्रलेखा’ पर दोबार फ़िल्में बनीं । 'भूले-बिसरे चित्र’ साहित्य अकादेमी से सम्मानित | पदमभूषण तथा राज्यसभा की मानद सदस्यता प्राप्त ।
प्रकाशित पुस्तकें
अपने खिलौने, पतन, तीन वर्ष, चित्रलेखा, भूले-बिसरे चित्र, टेढ़े-मेढ़े रास्ते, सीधी सच्ची बाते, धुप्पल, रेखा,
वह फिर नहीं आई, सबहि नचावत नाम गोसाई, प्रश्न और मरीचिका, युवराज चूण्डा (उपन्यास); प्रतिनिधि
कहानियाँ, मेरी कहानियाँ, मोर्चाबन्दी तथा सम्पूर्ण कहानियाँ (कहानी-संग्रह); मेरी कविताएँ; सविनय और एक नाराज कविता (कविता-संग्रह); मेरे नाटक, वसीयत (नाटक); अतीत के गर्त से, कहि न जाय का कहिए (संस्मरण); साहित्य के-सिद्धान्त तथा रूप (सहित्यलोचन); भगवतीचरण वर्मा रचनावली ( 1 4 खंडो में) |
निधन: 5 अक्टूबर, 1981
भैरवप्रसाद गुप्त
जन्म : 7 जुलाई 1918 को सिवानकला गाँव (बलिया, उ॰प्र.) ।
शिक्षा : इविंग कॉलेज, इलाहाबाद से स्नातक ।
अपने शिक्षक की प्रेरणा से कहानी लेखन की ओर रुझान हुआ । जगदीशचन्द्र माथुर, शिवदान सिंह
चौहान जैसे लेखकों एवं आलोचकों के सम्पर्क और साहित्यक-राजनीतिक परिवेश में उनके रचनात्मक संस्कारों को दिशा मिली ।
सन् 1940 में मजदूर नेताओँ से सम्पर्क । सन् 1944 में माया प्रेस, इलाहाबाद है जुडे । अपने अन्य समकालीनों की तरह आर्य समाज और गाँधीवादी राजनीति की राह से बामपंथी राजनीति की ओर आये । सन 1948 में वे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने ।
प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें : उपन्यास-शोले, मशाल, गंगा मैया, जंजीरें और नया आदमी, सत्ती मैया का चौरा, धरती, आशा, कालिन्दी, रम्भा, अंतिम अध्याय, नौजवान, एक जीनियस की प्रेमकथा, भाग्य देवता, अक्षरों के आगे (मास्टर जी) , 'छोटी-सी शुरुआत , कहानी संग्रह-मुहब्बत्त की राहें, फरिश्ता, बिगडे हुए दिमाग, इंसान, सितार के तार, बलिदान की कहानियाँ, मंजिल, महफिल, सपने का अंत, आँखों का
सवाल, मंगली की टिकुली, आप क्या कर रहे हैं ? नाटक और एकांकी-कसौटी, चंदबरदाई, राजा का बाण । सम्पादित पत्रिकाएँ-माया, मनोहर कहानियाँ, कहानी, उपन्यास, नई कहानियाँ, समारंभ-1, प्रारंभ ।
निधन: 5 अप्रैल, 3995
विगत 35 वर्षों से प्रो. भालचन्द्र जयशेट्टी कन्नड और हिन्दी साहित्य के सम्पर्क-सेतु के रूप में काम कर रहे हैं। लगभग दो दर्जन से भी अधिक अनूदित रचनाएँ आपने हिन्दी जगत को दी है और उतनी ही मौलिक रचनाएँ कन्नड साहित्य को दी हैं।
कन्नड की कालजयी रचनाएँ जैसे ‘भारतीय काव्यमीमांसा’ तथा ‘काव्यार्थ चिन्तन’ आपके प्रातिनिधिक अनुवाद हैं जिन्हें भारत सरकार तथा साहित्य अकादमी के पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
साहित्यिक योगदान के लिए कर्नाटक साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2003-04 के सम्मान से नवाजा गया। 1994 में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के तत्त्वावधान में अनुवाद के लिए महामना राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया।
सम्प्रति: साहित्य-सेवा में संलग्न।
डॉ. भालचंद्र मुणगेकर जाने-माने शिक्षाविद् तथा वैकासिक अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने अर्थशास्त्र में एम.ए. तथा पी-एच.डी. की उपाधियाँ मुम्बई विश्वविद्यालय से ग्रहण कीं। उन्होंने स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर पर लगातार 26 वर्षों तक अध्यापन किया। अर्थशास्त्र विभाग में ‘सेंटर ऑफ एडवांस स्टडीज़’ के अध्यक्ष रहे। भारतीय कृषि विकास के क्षेत्र में अर्थशास्त्रीय योगदान के लिए उन्हें ‘चाइनीज़ अकादमी ऑफ सोशल साइंस’ ने 1977 में चीन गणराज्य की यात्रा पर आमंत्रित किया।
डॉ. भालचंद्र मुणगेकर वर्ष 2000 में मुम्बई विश्वविद्यालय के कुलपति बने और 2005 में भारत सरकार ने उन्हें योजना आयोग की सदस्यता का सम्मान दिया।
डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचार-दर्शन पर उनकी विशेष पकड़ है। उन्होंने अपनी इसी अन्तःप्रेरणा से ‘डॉ. अंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज’ की स्थापना की और उसका अध्यक्ष पद सम्हाला।
अकादमिक तथा व्यावसायिक पत्रिकाओं एव जर्नल्स ने इनके आलेखों को संकलित और प्रकाशित किया है।
शिक्षा तथा समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए उन्हें कई संस्थानों द्वारा सम्मान तथा मानद उपाधियाँ दी गईं हैं, जिनमें ‘विशिष्ट शिक्षाविद् पुरस्कार’, मानद डी.लिट तथा ‘भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर पुरस्कार’ प्रमुख हैं।
आजकल वह ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्ट्डीज़, शिमला’ के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।
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