अविनाश मिश्र कविता के अति विशिष्ट युवा हस्ताक्षर हैं। इस संग्रह में शामिल कविताएँ एक लम्बी कविता के दो खंडों के अलग-अलग चरणों के रूप में प्रस्तुत की गई हैं। कवि प्रेम में आता है और साथ लेकर आता है—कामसूत्र। वात्स्यायन कृत कामसूत्र। इसी संयोग से इन कविताओं का जन्म होता है। कवि प्रेम और कामरत प्रेमी भी रहता है और दृष्टाकवि भी।
वात्स्यायन की शास्त्रीय शैली उसे शायद अपने विराम, और अल्पविराम पाने, वहाँ रुकने और अपने आप को, अपनी प्रिया को, और अपने प्रेम को देखने की मुहलत पाना आसान कर देती है, जहाँ ये कविताएँ आती हैं और होती हैं। यह शैली न होती तो वह प्रेम में डूबने, उसमें रहने, उसे जीने-भोगने की प्रक्रिया को शायद इस संलग्नता और इस तटस्थता से एक साथ नहीं देख पाता।
कोई इन कविताओं को सायास रचा गया कौतुक भी कह सकता है, लेकिन इनका आना और होना इन कविताओं के शब्दों और शब्दान्तरालों में इतना मुखर है कि आप इनकी अनायासता और प्रामाणिकता से निगाह नहीं बचा सकते।
ये उतनी ही प्राकृतिक कविताएँ हैं, जितना प्राकृतिक प्रेम होता है, जितना प्राकृतिक काम होता है।
काम की चौंसठ कलाएँ और स्त्री के सोलह श्रृंगार – इस संग्रह की 80 कविताओं के आलम्बन यही हैं.
इन कविताओं को पढ़ना प्रेम में होने, उसे जीने, अनुभूत करने की प्रक्रिया से गुजरने या स्मृति-आस्वाद को दुहराने जैसा है.
कवि का अनुभव-सत्य पाठक के जीवनानुभव के आस्वाद को नया अर्थ देने जैसा है.
किताब संग्रहणीय भी है, सुंदर प्रेम-उपहार भी.
5 जनवरी 1986 को गाजियाबाद में जन्म। शुरुआती शिक्षा और जीवन उत्तर प्रदेश के कानपुर में। आगे की पढ़ाई, लिखाई, संघर्ष और आजीविका के लिए साल 2004 से दिल्ली के आस-पास रहनवारी और बीच-बीच में दिल्ली से दूर प्रवास। कविता, आलोचना और पत्रकारिता के इलाके में सक्रिय। कुछ प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में सेवाएं दीं और लगभग सभी प्रतिष्ठित प्रकाशन माध्यमों पर रचनाएं और साहित्यिक पत्रकारिता से संबंधित काम प्रकाशित। ‘अज्ञातवास की कविताएं’ शीर्षक से कविताओं की पहली किताब साहित्य अकादेमी से गए बरस ही छपकर आई है। एक उपन्यास भी प्रकाशनाधीन। फिलहाल आलोचना की एक किताब पर काम और विश्व कविता और अन्य कलाओं की पत्रिका ‘सदानीरा’ का संपादन कर रहे हैं।