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वागीश शुक्ल
वागीश शुक्ल (जन्म : १९४६, उत्तर प्रदेश) हिन्दी के सबसे गहरे और तीक्ष्ण सिद्धान्तकार, आलोचक, अनुवादक और उपन्यासकार। दो पुस्तकें, 'शहंशाह के कपड़े कहाँ हैं’ और 'छन्द-छन्द पर कुमकुम’ प्रकाशित। पहली पुस्तक में साहित्य के अनेक मूलभूत प्रश्नों पर वैचारिक निबन्ध हैं। 'छन्द-छन्द पर कुमकुम’ निराला की सुदीर्घ कविता 'राम की शक्ति पूजा’ की अद्वितीय टीका है। आधुनिक समय में ऐसा कोई वैचारिक उद्यम किसी अन्य भारतीय लेखक ने इस स्तर का नहीं किया है। यह टीका निराला की इस महत्त्वाकांक्षी कविता को भारतीय साहित्य की देशी और मार्गी परम्परा के परिवेश में अवस्थित कर उसकी अर्थ समृद्धि को सहज उद्घाटित करती है। वागीश जी ने गालिब के लगभग पूरे साहित्य की विस्तृत टीका लिख रखी है, जो आने वाले वर्षों में प्रकाशित होगी। वे पिछले कुछ वर्षों से एक सुदीर्घ उपन्यास लिखने में लगे हैं जिसके कुछ अंश हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।
हिन्दी, संस्कृत, फारसी और अँग्रेज़ी वाङ्मय के गहरे और गम्भीर अध्येता वागीश जी साहित्य अकादेमी की परियोजना, भारतीय काव्यशास्त्र का विश्वकोश, के मुख्य सहयोगी सम्पादक भी हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली से सेवा-निवृत्त होकर इन दिनों आप बस्ती (उत्तर प्रदेश) में रहते हैं।
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