अब यह बात मानी जाने लगी है कि हिन्दी साहित्य की बीसवीं सदी का आत्म-संघर्ष उस काल की पत्र-पत्रिकाओं में दबा पड़ा है। इसका मतलब यह है कि इस सदी के साहित्येतिहास की समग्र-समुचित तस्वीर तभी सम्भव है जब प्रत्येक दशक की प्रतिनिधि पत्रिकाओं की सामग्रियों का मूल्यांकन हो। इस प्राथमिक प्रक्रिया के बाद ही बीसवीें सदी के हिन्दी सााहित्य के वास्तविक इतिहास का निर्माण सम्भव हो पाएगा।
जब तक हम पहले-दूसरे दशक की 'सरस्वती' एवं 'मर्यादा' को; तीसरे दशक के 'मतवाला', 'माधुरी' एवं 'सुधा' को; चौथे दशक के 'हंस' को; पाँचवें दशक के 'प्रतीक' एवं छठे-सातवें दशक की 'कल्पना' को धुरी मानकर नहीं चलेंगे तब तक हिन्दी साहित्य का वास्तविक इतिहास नहीं लिखा जा सकता है।
प्रस्तुत अनुसंधान 'कल्पना' के सन् 1949 से 1969 तक के अंकों पर आधारित है। सन् 1950 में जिस स्वप्निल लोकतन्त्र की आधारशिला रखी जाती है वह सन् 1969 तक आते-आते मोहभंग के अँधियारे से घिर जाता है। सन् 1969 एक नये भ्रमयुग की शुरुआत है। प्रगतिशील दावों और नारों के साथ इंदिरा गांधी की राजनीतिक यात्रा शुरू होती है। इंडिकेट और सिंडिकेट के संघर्ष में बूढ़ों का दल पराजित होता है। कहना नहीं होगा कि 'कल्पना' के बीस सालों का अध्ययन सपने की सुरमई घाटी से गुजरना भी है। हालाँकि इस सपने से मुक्ति तो सन् बासठ के बाद से ही मिल जाती है लेकिन उनहत्तर तक उस सपने की लम्बी होती छाया से मुक्ति नहीं मिलती। इसलिए उनहत्तर के बाद की 'कल्पना' में वह ऊष्मा और आस्था नहीं है जो पचास के बाद की 'कल्पना' में है। सन् 1969 के बाद 'कल्पना' फिर पहले जैसी हो नहीं सकती थी, क्योंकि समय बदल गया था। अड़तालीस के बाद बीस बरसों में हिन्दी साहित्य, भारतीय मनुष्य, उसकी अस्मिता और संघर्ष, उसके जीवन के प्रकाश और अँधेरे, उनके परिवर्तन और नैतिक चिन्ताओं, उसके सपनों और सच्चाइयों का साक्ष्य है 'कल्पना'।
जन्म : 11 मार्च, 1961 को झारखंड राज्य के गंगा तटवर्ती कस्बाई शहर राजमहल में। बचपन संथाल परगना के वनवासियों के बीच प्रकृति के आँचल में गुजरा।
शिक्षा : 1969 में औपचारिक शिक्षा की शुरुआत पितृग्राम मोतिया (गोड्डा) से हुई। मैट्रिक की परीक्षा 1976 में रेलवे हाई स्कूल, साहिबगंज से उत्तीर्ण की। सन् 1974 के जेपी आन्दोलन में भागीदारी। 1976 में पटना कॉलेज में दाखिला।
1977 में फणीश्वरनाथ 'रेणु’ के निधन ने समाजवादी साहित्यिकों के संघर्ष एवं सपने के प्रति जुड़ाव एवं आस्था पैदा की। 1981 में पटना कॉलेज से हिन्दी में बी.ए. ऑनर्स की परीक्षा पास की। इसी बीच यक्ष्मा से ग्रसित होकर स्वास्थ्य लाभ के लिए राँची के बोरोसेता एवं बोरोसलइया में वर्ष भर का विश्राम। 1982 में दिल्ली आ गए और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषा संस्थान में हिन्दी एम.ए. में दाखिला लिया। 1985-88 में एम.फिल. की उपाधि के लिए डॉ. नामवर सिंह के निर्देशन में 'गीतांजलि’ के हिन्दी अनुवादों पर शोध अध्ययन। 1986 में राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा हिन्दी के व्याख्याता पद पर चयन। 14 जुलाई, 1986 को राजकीय महाविद्यालय डूँगरपुर से अध्यापकीय जीवन की शुरुआत। अध्यापन अवधि के दौरान हैदराबाद से निकलने वाली यशस्वी साहित्यिक पत्रिका 'कल्पना’ पर अनुसंधान अध्ययन डॉ. नामवर सिंह के निर्देशन में 1992 में सम्पन्न। विगत 27 सालों से राजस्थान के डूँगरपुर, बयाना, भरतपुर, शाहपुरा (भीलवाड़ा), कोटा एवं बाराँ के शासकीय कॉलेजों में अध्यापन का सिलसिला जारी। फिलहाल कोटा विश्वविद्यालय, कोटा के हिन्दी विभाग के बी.ओ.एस. में। केसरी सिंह बारहठ स्मारक समिति शाहपुरा (भीलवाड़ा) के आजीवन सदस्य। हिन्दी की विविध पत्र-पत्रिकाओं में तीन दर्जन से अधिक साक्षात्कार, आलोचनात्मक आलेख, वैचारिकी और समीक्षाएँ प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक रेडियो वार्ताएँ प्रसारित।