तलाक एवं इससे जुड़े विषय- हलाला, बहुविवाह की पवित्र कुरान और हदीस के अन्तर्गत वास्तविक स्थिति क्या है? वैश्विक पटल पर, खासतौर से मुस्लिम देशों में तलाक से सम्बन्धित कानूनों की क्या स्थिति है ? भारत में तलाक की व्यवस्था के बने रहने के सामाजिक एवं राजनीतिक प्रभाव क्या हैं? महिलाओं के सम्पत्ति में अधिकार है वंचित बने रहने का तलाक से क्या सम्बन्ध हैं ? तलाक के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट के विचारों की क्या प्रासंगिकता हैं ? धार्मिक आस्था एवं व्यक्तिगत कानून का मूल अधिकार होने या न होने का तलाक पर क्या प्रभाव है ? कांग्रेस सरकार द्वारा तलाकोपरान्त भरणपोषण पर और भाजपा सरकार द्वारा तीन तलाक पर लाये गये कानून के क्या प्रभाव हैं ? तलाक की समस्या का भारतीय परिपेक्ष्य में समाधान क्या है ? तलाक से जुड़े ऐसे सवालों के सभी पहलुओं पर विश्लेषण करने का प्रयास इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है । ब्रिटिश हुकूमत द्वारा शरीयत अनुप्रयोग कानून, 1937 के माध्यम से जिस धार्मिक दुराग्रह का जहर घोलने का प्रयास किया गया था, उससे मुक्ति दिलाने में हमारे नीति-निमार्ता 68 वषों के बाद भी असफ़ल रहे हैं। इसके बावजूद भी असफ़ल रहे हैं कि संविधान- निर्माताओँ द्वारा इससे मुक्ति का रास्ता बताया गया है । यह रास्ता है धर्मनिरपेक्षता के आईने है एक यूनिफॉर्म सिविल संहिता बनाकर लागू करने का रास्ता । हम सब इस रास्ते की ओर आगे तो बढे, किन्तु महज पाँच वर्ष बाद ही हिन्दू कानून में सुधार पर आकर अटल गये । मुस्तिम, ईसाई सहित सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानूनो में सुधार कर एक समग्र व सर्वमान्य सिविल संहिता बनाने की इच्छाशक्ति नहीं जुदा सके । इसका खामियाजा इस देश को भुगतते रहना होता है । भारत में तीन तलाक की समस्या का मूल इसी में छिपा है, जिसका विश्लेषणात्मक अध्ययन करना भी इस पुस्तक का विषय है ।
अनूप बरनवाल का जन्म 15 जुलाई 1973 को जिला आजमगढ (यूपी) के एक छोटे से कस्बा ढेकमॉ बाजार में हुआ । आपने तिलकधारी महाविद्लायल, जौनपुर (पूर्वाञ्चल विश्वविद्याल) से बी. एस-सी. एवं कानून की पढाई की और 'एल-एल. बी. परीक्षा में सर्वोच्च स्थान व गोल्ड मेडल प्राप्त किया । आप वर्ष 1998 से इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत कर रहे है ।
वकालत के साथ आप एकेडमिक रुचि भी रखते है । कानून की पुस्तक 'प्रिन्सिपल एण्ड प्रैक्टिस आँफ रिट जुरिस्दिडक्शन' वर्ष 2004 में प्रकाशित हुई । आप विधिक पत्रिका 'वायस आफ लॉ एण्ड जस्टिस' के सम्पादन का दायित्व वर्ष 2010 से निभा रहे है । आपने संस्थागत सुधार के लिए भी समय-समय पर
प्रयास किया । इस दिशा में संवैधानिक महत्त्व की कई जनहित याचिकायें दाखिल की,जिनमें सुप्रीम कोर्ट के समक्ष' भारत के निर्वाचन आयोग में चयन प्रक्रिया में सुधार'और इलाहाबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश राज्य
के 'लोकायुक्त', 'सी.बी.सी.आई.डी.','विजिलेन्स', 'उपलोकायुक्त', जैसै महत्वपूर्ण संस्थाओं में सुधार के सम्बन्थ में जनहित याचिकाये प्रमुख है ।
आपके द्वारा 'यूनिफार्म सिविल कोड' विषय पर भी शोध-कार्य किया जा रहा है ।