प्रस्तुत रचनावली में डॉ० विपिनकुमार अग्रवाल के तीन निबन्ध संग्रह, दो नाटक संग्रह, एक नाटक और एक उपन्यास संकलित है ।
संवाद का आधार तर्क है । तर्क संतुलन से हटकर बराबर गतिशील रहता है । एक निष्कर्ष पर पहुँच कर तुरन्त उसे चुनौती देता है । हर देखे गए पहलू और हर मिले परिवेश को पूरी तस्वीर का अंग मानता है । अत: खोज कार्य को कभी समाप्त नहीं करता है । चिन्तन के इस प्रवाह को ये लेख प्रत्यक्ष. करते हैं ।
विपिन के बोलती बात करती इन रचनाओं की विशेषता है कि इनका स्वर कहीं ऊँचा नहीं उठता, तेज नहीं पड़ता । तीखापन आता है तो उनके अचूक व्यंग्य में । सुई की जगह वे तलवार का प्रयोग नहीं करते थे । बल्कि तलवार की जगह भी वे सुई से ही काम लेना चाहते थे । इसके लिए जो सहज आत्मविश्वास चाहिए, वह उनके समूचे व्यक्तित्व में था और बिना किसी प्रदर्शन के । प्रस्तुत रचनाओं में इस व्यक्तित्व की प्रेरक और प्रीतिकर झलक आपको जगह-जगह मिलेगी ।
सहज-बुद्धि से रोज-रोज की जिन्दगी हम तमाम औद्योगिकीकरण की कठिनाइयों के बीच जी रहे हैं, और चारों ओर फैली असंगतियों को ढो रहे हैं । नाटकीय भाषा और हरकत के समन्वय के द्वारा यह बात सामने लाई गई है । नाटकों में शब्द और हरकत पर विशेष बल दिया गया है । वहाँ बेतुकी भाषा और बेतुकी हरकतें पूरे नाटक को नया अर्थ देती हैं । दैनिक जीवन से जुड़ी साधारण बात भी विशेष स्थिति में रखकर वे विशेष मायने की गूंज पैदा कर देते हैं, नया अर्थ जोड़ देते हैं । इस प्रकार उनमें स्पष्ट दृष्टि और नाटकीय क्षण के प्रति सजगता पूर्ण रूप से है ।
उपन्यास ' बीती आप बीती आप ' एक नए प्रकार का उपन्यास है । इसमें भाषा के द्वारा हम अपने अतीत, आज और कल को टटोल सकते हैं और पास-पास आने दे सकते हैं । नए ढंग से देखने और परखने का अवसर दे सकते हैं ।
हम कह सकते हैं कि विपिन की सम्पूर्ण रचनाओं का एक ही मापदण्ड है कि वे कुछ अधिक कहती हैं, कुछ नया जोड़ती हैं । चाहे वे जीवन से अधिक कहें या साहित्य से अधिक कहें या अब तक का जो दर्शन है, उससे अधिक कहें ।
1952 से प्रयाग विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान का अध्यापन एवं शोध कार्य।
नाटक-संग्रह: तीन अपाहिज।
कविता-संग्रह: नंगे पैर।
निबंध-संग्रह: आधुनिकता के पहलू।
नाटक: लोटन।
वीरेन्द्र प्रकाश
हार्वर्ड विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज, अमेरिका से मास्टर्स उपाधि प्राप्त भारतीय प्रशासनिक सेवा में देश-विदेश में उच्च पदों के अनुभव से सम्पन्न वीरेन्द्र प्रकाश हिन्दुओं की हजार वर्ष से अधिक तक चली अवनति के कारणों के जिज्ञासु व विचारक ह®। अपने लम्बे प्रशासनिक कैरियर में दो बार उन्होंने पृथकतावादी, सशस्त्र विद्रोह को आमने- सामने से देखा व सँभाला है - पहले तो साठ के दशक के मध्य में मणिपुर के डिप्टी कमिश्नर के पद से उत्तर में नागा और दक्षिण में मीज़ो विद्रोहों को और फिर नौवें दशक के प्रारम्भिक वर्षों में जम्मू व कश्मीर में दो गवर्नरों के सलाहकार के रूप में।
भारत के विभिन्न भागों के अतिरिक्त उन्होंने तीन वर्ष नेपाल में भारतीय सहायता मिशन के अध्यक्ष व दो वर्ष युगाण्डा में विश्व ब®क सलाहकार के रूप में बहुमूल्य अंतर्राष्ट्रीय अनुभव प्राप्त किया। दिल्ली में मुख्य सचिव व भारत सरकार में सचिव के पदों का दायित्व निभाने के बाद सेवानिवृत्ति के उपरांत उन्होंने एक कमीशन और एक उच्च अधिकार - सम्पन्न समिति की अध्यक्षता कर लोक प्रशासन को अपने अध्ययन व अनुभव का लाभ प्रदान करने का प्रयास किया।
दिल्ली संघ क्षेत्र के अपने लम्बे कार्यकाल में उन्होंने संघ परिवारवालों के मन-मस्तिष्क को सूक्ष्म रूप में निकटता से जाना-बूझा जिसका परिणाम इस कृति में स्पष्ट परिलक्षित होता है।