सतीनाथ भादुड़ी का कथा-साहित्य बांग्ला-भाषा का कीमती दस्तावेज है। उन्होंने साम्राज्य के हर तबके के लोगों का बड़ा ही गहन अध्ययन किया है। मन के भीतर उठनेवाले भावांे का चित्रण करने में वे अतुलनीय हैं।
भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम आन्दोलन पर आधारित सतीनाथ भादुड़ी का महान उपन्यास है ‘ढोड़ाय चरितमानस’! आजादी के लिए संघर्ष करते हुए अधपेरे, अधनंगे, निरक्षर लोगों की जैसी मर्मांतक कथा उन्होंने अपने इस उपन्यास में कही है, अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने लालची भू-पतियों, स्वार्थी व्यवसायियों तथा अवसरवादी बुद्धिजीवियों की दोरंगी भूमिका का पर्दाफाश इसी समय पर कर दिया था, जब हमारा देश आजाद होने को था। आज जब हम उन दुष्चक्रों में फँसी जनता को देखते हैं, तो कह सकते हैं- उनकी भविष्यवाणी कितनी सटीक थी!
सतीनाथ भादुड़ी ने शोषण, अत्याचार और सामाजिक दुर्नीतियों को निकट से देखा था। समाज के दलित, शोषित और उपेक्षितों के प्रति उनके मन में अपार स्नेह था। यही कारण है कि उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम की महत्ता, ततमा-वंश में पैदा एक निर्धन, निरीह, निरक्षर ‘ढोड़ाय’ को दी है और वर्ण-भेद समर्थक तुलसीकृत रामायण की आज के समाज में परिवर्तित भूमिका की वांछनीयता दिखलाने के लिए एक नई रामायण रची ततमा, कोइरी धांगड़ी की महिमा-उद्भावक अपने उपन्यास को ‘ढोड़ाय चरितमानस’ कहा।
‘ढोड़ाय चरितमानस’ अपने पात्र-पात्रियों को सम्पूर्ण रूप-रेखाओं के साथ पाठकों के मन पर उतार देता है। इस उपन्यास को ‘नवोदित भारत का महाकाव्य’ कहा जाय, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।