छायावादी काव्य के विकास में महादेवी वर्मा का योगदान अप्रतिम है ! वे अपने समय के कवियों में एक अलोकिक भावजगत का सृजन कर छायावादी काव्य-धारा को एक नयी सौंदर्य दृष्टि प्रदान करती हैं ! यही कारन है कि उन्हें छायावादी काव्य-धरा में रहस्यवादी भाव-धारा का प्रमुख कवि माना जाता है ! सर्वथा नये उपमान, अमूर्तन, लाक्षणिकता, प्रतीक, बिम्ब उनके काव्य को लालित्य-योजना की दृष्टि से एक ऐसा आयाम प्रदान करते हैं जो छायावादी कवियों में उनकी अपनी अलग पहचान बनाता है !
प्रस्तुत ग्रन्थ में लेखक ने महादेवी वर्मा की सौंदर्य-दृष्टि से बचकर लेखक ने भारतीय और पाश्चात्य सौंदर्य शास्त्र के ज्ञान का गंभीर उपयोग किया है ! यही कारण है कि प्रस्तुत पुस्तक महादेवी वर्मा के काव्य-विवेचन में नयी दृष्टि का समावेश कर सकी है ! शास्त्रीय और समसामयिक काव्यालोचन में प्रस्तुत पुस्तक का सुनिश्चित योगदान है !