सुंदरलाल बहुगुणा कैसे टिहरी रियासत में एक मुलाजिम होते-होते रह गए और कैसे गाँधीजी के अहिंसा आंदोलन में कूद पड़े, इसकी भी एक दास्तान है। टिहरी के महान क्रांतिकारी श्रीदेव सुमन ने उनसे पूछा कि ‘पढ़ाई के बाद क्या करोगे?’ 13 साल के सुंदरलाल ने कहा, ‘रियासत की सेवा।’ एक गरीब की तरफ अंगुली करके सुमन ने कहा, ‘तब इस जनता की सेवा कौन करेगा?’ इसी सवाल ने उन्हें अपना रास्ता बदलने को मजबूर किया।
1 जनवरी, 1927 को गाँव: मरोड़ा, जिला टिहरी गढ़वाल में जन्मे सुंदरलाल बहुगुणा ने आरंभिक शिक्षा गाँव और उत्तरकाशी में पाई। बाद में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से बी.ए. किया। उन्होंने अछूतोद्धार, पर्यावरण, खादी और चिपको आंदोलनों में सक्रिय हिस्सेदारी की। वे अनेक बार जेल गए। पर्यावरण-रक्षा के मुद्दों को लेकर उन्होंने पूरे हिमालय की पैदल यात्रा की और चिपको आन्दोलन को विश्वव्यापी प्रसिद्धि दिलाई।
आज वे टिहरी बाँध के खिलाफ अपने ऐतिहासिक अनशन के लिए चर्चित हैं लेकिन आनेवाली पीढ़ियाँ उन्हें भारत में पर्यावरण की अलख जगाए रखने के लिए याद रखेंगी।
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