वनोदेय
वनसंपदा प्रकृति का अनोखा उपहार है ! वर्षा-पानी, कृषि, पशुपालन आदि अन्य अद्योग भी जंगलों के साथ अभिन्न रूप से जुड़े हैं ! प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कई प्रकार के लाभ जंगलों से हमें प्राप्त होते हैं ! भारतीय अध्यात्मिक जीवन-दर्शन एवं चिंतन के पवित्र तथा उदात्त केंद्र मने जाते हैं ये ! इन्हीं सब विशेषताओं के मद्देनजर अनादि काल से वनांचल बहुमूल्य धरोहर मने जाते रहे हैं !
किन्तु विगत कुछेक दर्शकों से हमने इस धरोहर की रक्षा की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया और अभी भी हम इस ओर अनदेखी ही कर रहे हैं ! हम जंगलों की निरंतर नोच-खसोट और हत्या इतनी निर्ममता से कर रहे है कि इससे हमारी सहृदयता पर बड़े-बड़े प्रश्नचिन्ह लगते ही जा रहे हैं !
प्रकृति के प्रति यह कृतघ्नता अंततः समूची मानवता के विनाश का कारन बन सकती है ! दुनिया पर मंडरा रहे इन्हीं खतरों के बादलों की ओर ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास इस पुस्तक के जरिए किया गया है !
दयानन्द कॉलेज, सोलापुर में स्नातकीय शिक्षा पूर्ण करने के बाद व्यावसायिक प्रशिक्षण कोयम्बतूर फोरिस्ट कॉलेज, बेंगलुरु, दिल्ली और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान (मध्यप्रदेश), देहरादून के वानिकी एवं वन्यप्राणी संस्थानों में प्राप्त किया ! नांदेड, पुणे, पनवेल में विख्यात संस्कृत पंडितों से परंपरागत पद्धति से संस्कृत का अध्ययन ! जर्मन तथा रूसी भाषा का भी अध्ययन ! देश के ख्याति-प्राप्त पक्षी विशेषज्ञ ! वन्यजीव प्रबंधन, वानिकी, वन्य प्राणियों एवं पक्षियों के व्यवहार सम्बन्धी विशेष अध्ययन एवं शोधकार्य ! अन्तेराष्ट्रीय परिषदों में सहभाग !
वनसंपदा, पशु-पक्षियों, जंगलो के प्राणियों से सबंद्ध लगभग दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित ! सोलापुर (2006) में सम्पन्न 79वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मलेन के अध्यक्ष ! वन्य विभागीय साहित्य सम्मेलनों के भी अध्यक्ष रहे !
महाराष्ट्र राज्य, विदर्भ साहित्य संघ, भैरुरतन दमानी, फाय फाउंडेशन तथा अन्य कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत/सम्मानित !