यशवन्तराव गडाख
वक्त आने पर राजनीति में लड़ना तो पड़ेगा ही, पीछे हटने से काम नहीं चलेगा | रुक नहीं सकेंगे | कभी-कभी सोचता हूँ कि यह सब सही में क्या हो रहा है ? समन्वय की राह दूर क्यों हो जाती है ? चार कदम पीछे हटकर चार कदम आगे भी तो जा सकते है | समन्वय से सुख को बाँटा जाए | सुख को अपने पास नहीं रखे रहना चाहिए |
दुख आ गया अपने हिस्से तो गम न करो, बंजर में अपनी पसंद के पेड़ के बीज जमीन के अन्दर रोपते जाओ | पहली बारिश में उगते-बढ़ते अंकुरों को देखो | पेड़ बढ़ता जाएगा तो अपनी आखिरी साँस भी उस पेड़ में घुलमिल जाएगी |
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